By Manish Aggarwal
Contributing Author for Spark Igniting Minds
क्या है जो हृदय पसंद नहीं
जो न साफ है, पर गंद नहीं!
कानून का बंधन नहीं,
न्याय को वन्दन नहीं
अधिकार हों सागर के जैसे
कर्तव्य का अभिनन्दन नहीं!
पीड़ा-पीड़ा सब कहें
दवा को पर मत सहें
चर्चा होती कहीं बन्द नहीं
सब बुद्धिमान कोई मंद नहीं!
ख्वाहिशें कहीं कम न हो
काम का सितम न हो
हो समानता कहीं बन्द नहीं
समान होना मुझको पसंद नहीं!
जो मैं करूँ व्यवहार है
दूजे का भ्रष्टाचार है
हो जवाबदेही बंद नहीं
जवाब देना मुझको पसंद नहीं!
व्यवस्था नहीं, प्रबंधन नहीं
बहना नहीं, बंधन नहीं
स्थिति नहीं, परिवर्तन नहीं
स्थिरता नहीं, स्पन्दन नहीं!
निर्जन नहीं, परिजन नहीं
खंडन नहीं, सृजन नहीं
स्वछंद नहीं, संबंध नहीं
उल्लंघन नहीं, कमरबंध नहीं!
हृदय द्वन्द्व में मैं जी रहा
विष मानो हर पल पी रहा
है अन्तर का सींचन नहीं
कंचन नहीं, मंचन नहीं!
(Featured Image by Artturi Mäntysaari from Pixabay)
About the Author
Manish Kumar Aggarwal, The Mindfood Chef, is a life coach and an author, He encourages and guides people towards realizing awareness via inner communication. He spreads the message of feeling gratitude, joy, and abundance.
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