By Roopa Rani Bussa
Contributory Author for Spark Igniting Minds
जाना पड़ा घर से दूर,
हालातों से है मजबूर,
सालों साल गए गुजर,
अपनी मिट्टी को छूकर!
मुश्किल बहुत ये राहे,
मंज़िलें सरकते ही चलें,
अनेक कारण हुए इकट्ठे,
तृभूमि रही इस दिल में!
दूर से लगे सब सुंदर,
सभी में है कमी ज़रूर,
अनुभव किया साफ़-जाहिर,
अपना हमेशा है मधुर!
उड़ान पर चढ़ घूमो जहान,
उड़ सकते जब चाहे मन,
परिस्थिति ने रोक ली गमन,
याद आता अपना चमन!
आज विषकीट बना ज़हर,
अपनों को छोड़ आए इधर,
रक्षा करो परवरदिगार,
तुझ पर छोड़ा अपना भार!
(Featured Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay)
About the Author
Roopa Rani Bussa is a homemaker living in California and is a nature lover, the beholder of positive power, a believer of social services, a Passionate teacher, and a well organized passionate writer.
The journey of writing began a few years ago and she considers it an honor to carry forward the legacy of her father. She writes quotes and poetry in Telugu, Kannada, Hindi English, and Urdu.
Visit her at
Comments