By Manish Aggarwal
Contributing Author for Spark Igniting Minds
हृदय धरती देख रही है तमाशा
कभी हरियाली कभी बंजर है
कभी बीजों की मुट्ठी भर आती
कभी ईंटों-गारे का मंज़र है!
कभी रोटी देती थी वो अब,
छत बन फर्ज निभाती है
माँ बन जो अन्न देती थी सबको,
पैसों में तोली जाती है
पल-पल जीवन छिन रहा जो,
लालच का वह खंजर है
हृदय धरती देख रही है तमाशा
कभी हरियाली कभी बंजर है!
संतान को रोता देख कर हर दम,
माता नीर बहाती है
सूखी नहीं है फिर भी वह,
जिस खातिर माँ बिक जाती है
भर-भर खाली रहता देखा,
देखा अदभुत मंज़र है
हृदय धरती देख रही है तमाशा,
कभी हरियाली कभी बंजर है!
(Featured Image by Sasin Tipchai from Pixabay)
About the Author
Manish Kumar Aggarwal, The Mindfood Chef, is a life coach and an author, He encourages and guides people towards realizing awareness via inner communication. He spreads the message of feeling gratitude, joy, and abundance.
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