By Dr. Farah Deeba
Contributing Author for Spark Igniting Minds
उनको जो इबादत का दर्जा दे दिया
वो अपने आप को ख़ुदा समझ बैठे !
कयामत का डर अब हमे सताने लगा
के अपने रूतबे से हमें वो डरा बैठे !
उनके मर्तबे की अब बहुत बुलंदी है
की आसमां का रुख वो अब कर बैठे !
वोह बेफिक्र हो गए बंदे कि बंदगी से
की औलिया की हमनवाजी में वो जा बैठे !
तमाम ज़िन्दगी की गुस्ताखियां अब नहीं बर्दाश्त
की हम भी काफिराना रुख अब कर बैठे ।
(Featured Image by Stefan Keller from Pixabay)
About the Author
Dr. Farah Deeba is a runner, motivator and counsellor, trainer and educationist, proficiency in management and administration.
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