By Manish Aggarwal
Contributing Author for Spark Igniting Minds
आज रूपए ने मिलना स्वीकारा
मानो मन ने मन को पुकारा!
पीड़ा जो मेरी थी,
वही पीड़ा उसकी भी थी
न मैं बड़ा हो रहा था
बढ़ने की चाह उसकी भी थी!
मैं उसको कोस रहा था
वह मुझ पर बोल रहा था
उसकी बातों ने सील दिए लब
हृदय उसके शब्दों को तोल रहा था!
करती है यहाँ सरकार काम आम आदमी का
हर आम आदमी सरकार बना हुआ है
सफाई, बीमारी, रोजगार सरकार देख रही है
नीतियों की चर्चा में हर शख्स लगा हुआ है!
साथ रहने की कला कानून सिखाएगा
संसद क्या करे वह घर बैठा बताएगा
संस्कृति और पूजा-पद्धति अदालत का विषय होगी
टीoवीo पर बैठकर वो कानून समझाएगा!
दिखावे की दौड़ में धरती-गगन न अपना
उधार में है जीता, जीता है सारा सपना
बिक गया भविष्य, बिक गईं कईं नस्लें
सरकार हो या तुम, न सीखे कोई तपना!
ज्यादा और मुफ्त की चाह ने
सब कुछ है गिरवी रखा
जमीर बिक रहा है सबका
कुछ ने देश बिक्री रखा!
हृदय बाहर हो या भीतर मैं तो लुड़क रहा हूँ
गुलाम हो रहे तुम, इसलिए मैं रो रहा हूँ
एक बीज ही है काफ़ी धरती हरित करो तुम
इमान की कुदाल से स्वधर्म चलित करो तुम!
(Featured Image by Gerd Altmann from Pixabay)
About the Author
Manish Kumar Aggarwal, The Mindfood Chef, is a life coach and an author, He encourages and guides people towards realizing awareness via inner communication. He spreads the message of feeling gratitude, joy, and abundance.
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